जन्म | 24 जनवरी, 1924 |
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जन्म स्थान | पितौझिया गांव, समस्तीपुर, बिहार |
पिता का नाम | गोकुल ठाकुर |
माता का नाम | रामदुलारी देवी |
शिक्षा | पटना विश्वविद्यालय से स्नातक |
राजनीतिक दल | संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी, जनता पार्टी, कांग्रेस (आई) |
मुख्यमंत्री कार्यकाल | 1970-1971, 1977-1979 |
उपलब्धियां |
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मृत्यु | 17 मई, 1988 |
कौन थे जन-नायक कर्पूरी ठाकुर:
कर्पूरी ठाकुर, वो नाम जिसके उच्चारण के साथ ही बिहार के दबे-कुचले, वंचित तबके की नजरों में चमक और आशा झलकने लगती है। एक ऐसा नेता, जो मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठने के बावजूद चप्पल पहनता था, और झोपड़ी में रहता था। जिनकी ईमानदारी और जनपक्षधरता आज भी बिहार की राजनीति में एक मिसाल है। 24 जनवरी, 1924 को समस्तीपुर के पितौंझिया गांव (अब कर्पूरी ग्राम) में जन्मे कर्पूरी ठाकुर का जीवन संघर्ष और समर्पण की अद्भुत मिशाल है।
आपको बता दे कि करपुरी ठाकुर स्वतंत्रता से पहले छात्र आंदोलनों में सक्रिय रहे, भारत छोड़ो आंदोलन में भाग लेने के लिए अपनी पढ़ाई बीच में छोड़ दी और 26 महीने जेल में बिताए। स्वतंत्रता के बाद समाजवादी विचारों से ओतप्रोत होकर राजनीति में कदम रखा। जनसंघर्षों का नेतृत्व किया, किसानों और मजदूरों के अधिकारों के लिए आवाज बुलंद की। वो 1967 में पहली बार विधायक बने और फिर 1970 में बिहार के मुख्यमंत्री बने। हालांकि राजनीतिक उठापटक के चलते उनके दोनों कार्यकाल छोटे ही रहे, लेकिन इस छोटे कार्यकाल में उन्होंने कई ऐतिहासिक फैसले लिए, जो आज भी उनकी विरासत के तौर पर याद किए जाते हैं।
- गरीबों के लिए लैंड रिफॉर्म: ठाकुर सरकार ने बड़े भूमिपतियों से जमीन लेकर गरीबों में बांटने का कानून बनाया, जिसे बिहार लैंड रिफॉर्म एक्ट के नाम से जाना जाता है। इससे हजारों गरीबों को जमीन का अधिकार मिला और वो आत्मनिर्भर बनने की ओर बढ़े।
- शराबबंदी लागू किया: समाज में व्याप्त शराब के नशे से उत्पन्न होने वाली समस्याओं को देखते हुए कर्पूरी ठाकुर की सरकार ने 1970 में ही बिहार में शराबबंदी कानून लागू कर दिया था। हालांकि बाद में इसे हटा लिया गया, लेकिन कर्पूरी ठाकुर का ये कदम सामाजिक सुधार की दिशा में उठाया गया एक साहसी कदम था।
- शिक्षा पर जोर दिया: शिक्षा को गरीबों के उत्थान का जरिया मानते हुए ठाकुर सरकार ने प्राथमिक शिक्षा को निःशुल्क और अनिवार्य बनाया। साथ ही शिक्षा संस्थानों में पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण की व्यवस्था लागू की।
- ईमानदारी की मिसाल: कर्पूरी ठाकुर अपनी ईमानदारी और सादगी के लिए भी जाने जाते थे। उन्होंने मुख्यमंत्री रहते हुए सरकारी सुविधाओं का तनिक भी लाभ नहीं उठाया, अपने पुश्तैनी झोपड़ी में ही रहे और सत्ता के आडंबरों से दूर रहकर जनता की सेवा की।
कर्पूरी ठाकुर ने बिहार के मुख्यमंत्री के रूप में दो बार कार्यकाल संभाला था। उनका पहला कार्यकाल 1970 से 1971 तक था, जो केवल 11 महीने का था। तथा उनका दूसरा कार्यकाल 1977 से 1979 तक था, जो केवल 2 साल और 1 महीने का था। इस प्रकार, कुल मिलाकर कर्पूरी ठाकुर का मुख्यमंत्री के रूप में कार्यकाल 3 साल और 2 महीने का था।
बिहार के मुख्यमंत्री के रूप में कर्पूरी ठाकुर का पहला कार्यकाल राजनीतिक अस्थिरता के कारण बहुत छोटा था। उन्हें 1971 में विधान सभा चुनाव में हार का सामना करना पड़ा और उन्हें मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा था। उनका दूसरा कार्यकाल भी राजनीतिक उथल-पुथल के कारण प्रभावित हुआ। 1979 में, उन्हें कांग्रेस पार्टी के समर्थन वापस लेने के कारण मुख्यमंत्री पद से हटना पड़ा था।
कर्पूरी ठाकुर को मरणोपरांत भारत रत्न से सम्मानित किया गया
2024 में कर्पूरी ठाकुर को मरणोपरांत भारत रत्न से सम्मानित किया गया हैं। ये सम्मान न सिर्फ उनके जीवन और कार्यों की मान्यता को दर्शाता है, बल्कि बिहार के उन लाखों दबे-कुचले लोगों की आवाज का भी सम्मान है, जिन्हें ठाकुर ने नेतृत्व दिया और जिन्हें आज भी उनकी विरासत से उम्मीद मिलती है।
दिल का दौरा पड़ने से हुई थी कर्पूरी ठाकुर की मौत
कर्पूरी ठाकुर की मृत्यु 17 फरवरी, 1988 को पटना में हुई थी। उनकी मृत्यु की आधिकारिक रिपोर्ट में दिल का दौरा पड़ने से मृत्यु होने की बात कही गई थी। हालांकि, कुछ लोगों का मानना है कि उनकी हत्या की गई थी।
उनकी मृत्यु के समय उनकी उम्र 64 वर्ष थी।
कर्पूरी ठाकुर की मृत्यु के बाद बिहार में उनके समर्थकों ने कई प्रदर्शन किए। उन्होंने आरोप लगाया कि उनकी हत्या की गई थी। उन्होंने सरकार से मामले की जांच की मांग की।
सरकार ने मामले की जांच के लिए एक समिति का गठन किया। समिति ने अपनी रिपोर्ट में दिल का दौरा पड़ने से मृत्यु होने की बात कही थी। हालांकि, समिति की रिपोर्ट से कई लोगों को संतुष्टि नहीं हुई।
कर्पूरी ठाकुर की मृत्यु को लेकर आज भी कई तरह के कयास लगाए जाते हैं। कुछ लोगों का मानना है कि उनकी हत्या की गई थी। उनका मानना है कि उनकी हत्या के पीछे कुछ बड़े राजनीतिक दल शामिल थे।
हालांकि, इस बात के कोई पुख्ता सबूत नहीं मिले कि कर्पूरी ठाकुर की हत्या की गई थी। इसलिए उनकी मृत्यु का कारण दिल का दौरा पड़ना ही माना जाता रहा है।
आज भी जिंदा हैं उनकी विरासत
हालांकि, कर्पूरी ठाकुर के नाम पर सियासत आज भी जारी है। बिहार की विभिन्न पार्टियां उनकी विरासत को भुनाने का प्रयास करती हैं, लेकिन सवाल ये उठता है कि असल में कौन उनके सिद्धांतों का अनुसरण कर रहा है। आज बिहार में सामाजिक असमानता, गरीबी, भ्रष्टाचार जैसे मुद्दे पहले की तरह ही गंभीर हैं। इसलिए जरूरत है कि आज हम न सिर्फ कर्पूरी ठाकुर की विरासत को याद करें, बल्कि उस पर अमल भी करें।
कर्पूरी ठाकुर का संपूर्ण जीवन संघर्ष और प्रेरणा का प्रतीक है, उनकी ईमानदारी और जनपक्षधरता हमें राजनीति के स्वार्थपूर्ण खेल से ऊपर उठकर समाज के हित के लिए काम करने की प्रेरणा देती है। उनकी विरासत को सच्ची श्रद्धांजलि तभी दी जा सकती है, जब उनके आदर्शों को व्यवहार में लाया जाए और बिहार को एक समतावादी, न्यायपूर्ण और प्रगतिशील राज्य बनाने के लिए प्रयास किए जाएं।