जिन नीलाभ सफेद तटों पर सूरज की किरणें हसीं बिखेरती थीं, वो आज सूनेपन की चादर ओढ़े खामोश खड़े हैं। मानो मालदीव का स्वर्ग किसी अदृश्य तूफान की चपेट में आ गया हो। ये तूफान है 'भारत के बायकॉट' का, जिसकी लहरें इस पर्यटन स्वर्ग को अपने आगोश में डूबोने को आतुर हैं।
भारत, जो कभी मालदीव के आशिकों में सबसे आगे होता था, आज उसी की नाराजगी झेल रहा है। कुछ राजनीतिक घटनाओं की वजह से सोशल मीडिया पर 'बायकॉट मालदीव' का उबाल इतना तेज है कि भारतीय पर्यटकों के कदम थम से गए हैं। और इस ठहराव के साथ ही मालदीव के आर्थिक तार टूटने का खतरा मंडराने लगा है।
पर्यटन, मालदीव की सांसें चलाता है। आंकड़े बताते हैं, पिछले साल वहां आने वाले विदेशी पर्यटकों में हर दसवां शख्स भारतीय था। ये भारतीय मेहमान ही थे, जो उस स्वर्ग के किनारों को आबाद करते थे, रिसॉर्ट्स को गुलजार करते थे, और स्थानीय लोगों के चेहरे पर मुस्कान बिखेरते थे।
लेकिन, अब ये मुस्कान धीमी पड़ रही हैं। रिसॉर्ट्स के आंगन सुनसान हो रहे हैं। रेस्तरां की मेजें खाली दिखाई देती हैं। भारतीय पर्यटकों के हंसते-खेलते चेहरे गायब हो चुके हैं। इस खामोशी के पीछे है, अरबों डॉलर का घाटा, हजारों बेरोजगार हाथ, और मालदीव के भविष्य की चिंता।
होटल कारोबार पर पहला तूफान टूटा है। भारतीय कंपनियों के भारी निवेश वाले ये आलीशान ठिकाने अब केवल सूने कमरों की गिनती कर रहे हैं। स्थानीय युवाओं के सपनो पर बेरोजगारी के अंधेरे में खो जाने का खतरा मंडराने लगा है।
लेकिन ये सिर्फ शुरुआत है। भारतीय व्यापार के कम होने से बाजार की रौनक पूरी तरह से फीकी पड़ी है। इसके असर से स्थानीय कलाकारों के हस्तशिल्प और मछुआरों के जाल खाली रह सकते हैं। वो हसीन नज़ारे देखने वाले अब शायद सिर्फ पंछी रह जाएंगे।
आह, यह सिर्फ आर्थिक नुकसान नहीं है। यह उस खूबसूरत सांस्कृतिक आदान-प्रदान का टूटना है, जो सदियों से भारत और मालदीव के बीच चला आ रहा था। यह उस सद्भावना का क्षरण है, जिसने दो तटों को जोड़े रखा था।
क्या ये टूटे हुए तार फिर जुड़ पाएंगे? क्या ये खोती हुई खूबसूरती लौट पाएगी? ये सवाल अभी बेजवाब हैं। लेकिन, एक बात तो तय है, 'बायकॉट' किसी को फायदा नहीं पहुंचाता। वो सिर्फ खूबसूरती को मिटाता है, आशाओं को बुझाता है, और रिश्तों को कमजोर करता है।
शायद समय है, इस तूफान को रोकने का। शायद वक्त है, संवाद के दरवाजे खोलने का।