Maldives President Mohamed Muizzu: मालदीव के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति इब्राहिम मोहम्मद सोलिह, जिन्हें मुइज़्ज़ू के नाम से जाना जाता है, ने एक विवादास्पद कदम उठाते हुए भारत से 15 मार्च तक अपने सैनिकों को मालदीव से वापस लेने का अनुरोध किया है। इस ऐलान ने भारत-मालदीव संबंधों में नए तनाव पैदा कर दिए हैं। आइए, इस निर्णय के पीछे के कारणों और मालदीव में भारतीय सैनिकों की मौजूदगी के इतिहास को विस्तार से समझें।
Maldives President Mohamed Muizzu |
मालदीव में भारतीय सैनिकों की उपस्थिति का इतिहास:
- मालदीव और भारत, दोनों ही देश प्राचीन सांस्कृतिक और भौगोलिक निकटता रखते हैं। भारत के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप न करने के सिद्धांत के तहत, मालदीव की संप्रभुता का हमेशा से भारत ने सम्मान किया है।
- 1988 में, मालदीव के तत्कालीन राष्ट्रपति अब्दुल गयूम को श्रीलंका के तमिल विद्रोहियों द्वारा तख्तापलट के खतरे का सामना करना पड़ा। भारत ने गयूम की सरकार की सहायता के लिए "ऑपरेशन लालगुड़ी" चलाया और विद्रोहियों को दबाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
- इस घटना के बाद, भारत और मालदीव के बीच एक सुरक्षा सहयोग समझौता हुआ, जिसमें भारतीय सैनिकों को मालदीव की रक्षा प्रणाली को मजबूत करने और प्राकृतिक आपदाओं के दौरान राहत कार्यों में सहायता करने की अनुमति दी गई।
- पिछले दशक में, भारतीय हवाई सेना के हेलीकॉप्टरों ने मालदीव के दूरदराज के द्वीपों तक चिकित्सा आपूर्ति पहुंचाने और आपातकालीन चिकित्सा निकासी में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
मुइज़्ज़ू का फैसला क्यों विवादास्पद है?
- राष्ट्रपति मुइज़्ज़ू का निर्णय एक प्रमुख नीतिगत बदलाव का संकेत देता है। उनके चुनाव अभियान का एक मुख्य वादा "भारत आउट" का नारा था, जिसमें उन्होंने विदेशी सैनिकों की उपस्थिति पर चिंता जताई थी।
- हालांकि, यह फैसला कई सवाल खड़े करता है। विशेषज्ञों का मानना है कि मालदीव की रक्षा प्रणाली भारत के सहयोग के बिना कमजोर हो सकती है। इसके अलावा, पर्यटन आधारित अर्थव्यवस्था वाले मालदीव के लिए प्राकृतिक आपदाओं के दौरान भारतीय सहायता महत्वपूर्ण है।
- आशंका जताई जा रही है कि मुइज़्ज़ू का यह फैसला चीन के साथ बढ़ते संबंधों का नतीजा हो सकता है। हाल ही में, उन्होंने चीन की यात्रा की और 20 समझौतों पर हस्ताक्षर किए।
भविष्य के लिए क्या संकेत मिलते हैं?
हिंद महासागर क्षेत्र में बढ़ती भू-राजनीतिक प्रतिस्पर्धा:
मालदीव से भारतीय सैनिकों की वापसी का अनुरोध हिंद महासागर क्षेत्र में बढ़ती भू-राजनीतिक प्रतिस्पर्धा के संदर्भ में देखा जा रहा है। चीन इस क्षेत्र में अपनी उपस्थिति बढ़ाने के लिए सक्रिय रूप से प्रयास कर रहा है, और भारत इसे अपने प्रभाव क्षेत्र के लिए खतरा मानता है।
चीन की बढ़ती उपस्थिति:
- चीन ने "बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव" (BRI) के तहत कई देशों में बुनियादी ढांचे की परियोजनाओं में भारी निवेश किया है, जिसमें मालदीव भी शामिल है।
- चीन ने मालदीव में एक नौसैनिक अड्डा स्थापित करने की भी इच्छा व्यक्त की है, जिससे भारत की चिंताएं बढ़ सकती है।
भारत के लिए मालदीव का महत्व:
- मालदीव भारत के लिए एक महत्वपूर्ण रणनीतिक सहयोगी है। यह भारत के दक्षिणी तट से सिर्फ 700 किलोमीटर दूर स्थित है।
- मालदीव भारत के लिए समुद्री सुरक्षा और व्यापार के लिए महत्वपूर्ण है।
भारतीय सैनिकों की वापसी का प्रभाव:
- यदि भारतीय सैनिक मालदीव से वापस ले लिए जाते हैं, तो यह चीन के लिए इस क्षेत्र में अपनी उपस्थिति बढ़ाने का एक अवसर होगा।
- इससे भारत की सुरक्षा और रणनीतिक हितों को नुकसान होने की संभावना बढ़ सकती है।
भारत की तरफ से अभी तक नहीं दी गई है कोई प्रतिक्रिया!
आपको बता दें कि मुइज़्ज़ू के इस बयान के बाद से भारत में इस विषय को लेकर चर्चा काफी जोड़ हैं लेकिन अभी तक मुइज़्ज़ू के अनुरोध पर भारत की तरफ से कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं दी गई है। दोनों देशों के बीच उच्च-स्तरीय वार्ता के जरिए इस मसले को सुलझाने की उम्मीद है।
यह घटना भारत-मालदीव संबंधों के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हो सकती है। दोनों देशों के नेताओं को भविष्य के रिश्तों की दिशा तय करने के लिए संवाद और कूटनीति का रास्ता अपनाना चाहिए।
निष्कर्ष:
मालदीव से भारतीय सैनिकों की वापसी का अनुरोध एक महत्वपूर्ण घटना है जिसका हिंद महासागर क्षेत्र में भू-राजनीतिक प्रतिस्पर्धा पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ सकता है। भारत को इस घटना को ध्यान से देखना चाहिए और अपने हितों की रक्षा के लिए आवश्यक कदम उठाने चाहिए।
यह लेख मुइज़्ज़ू के फैसले, मालदीव में भारतीय सैनिकों की उपस्थिति के इतिहास और इस घटना के भविष्य के प्रभावों को विस्तार से समझाता है। उम्मीद है, इससे आपको इस जटिल मामले की बेहतर जानकारी प्राप्त हुई होगी।