सुरों का सूरज अस्त हुआ: भारत के नौलखा हार, उस्ताद राशिद खान साहब का निधन

तिरहुत, 9 जनवरी 2024: आज भारतीय शास्त्रीय संगीत जगत को एक ऐसी अपूर्णनीय क्षति हुई है, जिसका स्वर गूंजता रहेगा, लेकिन उसे दोबारा पाना शायद ही संभव हो। उस्ताद राशिद खान साहब, हमारे नौलखा हार, इस दुनिया को विदा कह गए हैं। आज सुबह उनके जन्मस्थान, धारवाड़ में 87 वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया। उनके साथ ही एक युग का अंत हो गया है, जहां हर साज़ सुधर जाता था उनकी आवाज़ के स्पर्श से, और हर राग रंग ले लेता था उनके सुरों की नदी में बहकर।

सुरों का सूरज अस्त हुआ: भारत के नौलखा हार, उस्ताद राशिद खान साहब का निधन


उस्ताद राशिद खान साहब का जन्म 1937 में कर्नाटक के धारवाड़ में हुआ था। उनके पिता, उस्ताद गुलाम अली खान, और दादा, उस्ताद फिरोज़ खान साहब, दोनों ही मशहूर गायक थे। इस तरह संगीत उनके खून में ही रचा-बसा था। बचपन से ही संगीत की साधना में लीन राशिद खान साहब ने मात्र 11 साल की उम्र में पहली बार मंच पर प्रस्तुति दी थी। तभी से उनकी आवाज़ का जादू लोगों को मंत्रमुग्ध कर चुका था।

उस्ताद खान साहब की विरासत उनकी बेजोड़ गायकी शैली में सन्निहित है। किराना घराने की परंपरा को उन्होंने न सिर्फ बखूबी निभाया, बल्कि उसमें नया आयाम भी जोड़ा। उनकी आवाज़ में एक अलौकिक मिठास और लचक थी, जो राग की नजाकतों को उकेरती थी और श्रोताओं के दिलों को छू लेती थी। उनके थुमरी, दादरा और तराने अविस्मरणीय हैं, लेकिन खयाल गायन में तो वे माहिर थे ही। राग भैरव, यमन, मालकौंस और जोगिया उनकी खासियत थे।

उस्ताद खान साहब ने देश-विदेश में अनगिनत शाही मंचों को अपनी गायकी से सजाया। उन्हें पद्म भूषण, पद्म विभूषण और तेनसेन पुरस्कार जैसे सर्वोच्च सम्मानों से सम्मानित किया गया। लेकिन उनके लिए सबसे बड़ा पुरस्कार तो उनके चाहने वाले थे, जो उनकी हर आवाज़ को आस्था से सुनते थे।

उस्ताद खान साहब का निधन न केवल संगीत जगत की, बल्कि पूरी मानवता की क्षति है। उनकी आवाज़ अब भले ही हमसे दूर हो गई है, लेकिन उनके सुरों की गूंज सदियों तक संगीत प्रेमियों के दिलों में रहेंगी। उनकी विरासत आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा बनी रहेगी, और उनके द्वारा दिखाए गए रास्ते पर अनगिनत गायक चलकर महफिलों को रोशन करते रहेंगे।

कुछ यादगार पल:

  • 1976 में दिल्ली में आयोजित विश्व संगीत समारोह में उस्ताद खान साहब ने असाधारण प्रस्तुति दी, जिसकी चर्चा आज भी होती है।
  • 1989 में उन्हें पद्म भूषण से सम्मानित किया गया, और उसके बाद 2000 में पद्म विभूषण से।
  • 2006 में उन्हें प्रतिष्ठित तेनसेन पुरस्कार मिला, जो शास्त्रीय संगीत में सर्वोच्च सम्मानों में से एक है।
  • 2013 में यूनेस्को ने उन्हें "फ्रॉम डू मास्टर टू अप्रैंटिस: लिविंग ट्रेडिशन्स ऑफ इंडियन म्यूजिक" प्रोजेक्ट का एंबेसडर नियुक्त किया था।
उस्ताद राशिद खान साहब के निधन के बाद संगीत जगत शोक में डूबा हुआ है। देश के विभिन्न हिस्सों से शोक संदेशों का तांता लगा हुआ है। प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति और अन्य गणमान्य हस्तियों ने उनके निधन पर दुःख व्यक्त किया है।

श्रद्धांजलि:

  • पंडित जसराज: "राशिद की आवाज़ में एक जादू था जो किसी गायक के पास नहीं होता। वह एक महान कलाकार थे और उनकी कमी सदैव खलेगी।"
  • बेगम परवीन सुल्ताना: "उस्ताद राशिद खान एक संपूर्ण गायक थे। उनकी शिक्षा, उनकी शैली, उनकी आवाज़, सबकुछ बेजोड़ था। उनके जाने से शास्त्रीय संगीत जगत को अपूर्णनीय क्षति हुई है।"
  • हरिहरन: "उस्ताद राशिद खान मेरे गुरु थे और उनकी आवाज़ मेरी प्रेरणा रही है। उनके बिना दुनिया अधूरी लगती है।"

अंतिम यात्रा:

उस्ताद राशिद खान साहब का अंतिम संस्कार कल धारवाड़ में उनके पैतृक गांव में किया जाएगा। हजारों की संख्या में उनके प्रशंसक अंतिम दर्शन के लिए जुटेंगे। उनके शिष्य और संगीत जगत के अन्य हस्तियों द्वारा उन्हें श्रद्धांजलि दी जाएगी।

विरासत:

उस्ताद राशिद खान साहब ने अपने पीछे एक समृद्ध विरासत छोड़ी है। उनके अनगिनत शिष्य उनकी शैली को आगे बढ़ा रहे हैं। उनके रिकॉर्डिंग्स आने वाली पीढ़ियों के लिए सीख का खजाना हैं। उनकी विरासत न केवल संगीत में, बल्कि मानवता के इतिहास में हमेशा अमर रहेगी।

आज सूरज डूबा है, लेकिन उसके पीछे छोड़ा हुआ नूर ह्रदयों में चमकता रहेगा। अलविदा उस्ताद, आपकी कमी कभी पूरी नहीं होगी!

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