उर्दू के मशहूर शायर मुनव्वर राणा इस दुनिया को अलविदा कह चुके हैं। दिल का दौरा पड़ने के बाद लखनऊ के पीजीआई अस्पताल में उनका निधन हो गया। बताया जा रहा है कि 71 वर्षीय राणा पिछले कई महीनों से लंबी बीमारी से जूझ रहे थे, और पीजीआई अस्पताल में उनका इलाज चल रहा था। वह किडनी और दिल से जुड़ी बीमारियों से ग्रसित थे।
मुन्नवर राणा का नाम हिंदी जगत में किसी परिचय का मोहताज नहीं। शायरी की दुनिया में वह एक अनोखा सितारा थे, जिसने अपनी मर्मस्पर्शी शायरी और बेबाक अंदाज से लाखों शायरों और शायरी प्रेमियों के दिलों पर राज किया। उनका 11 जनवरी 2024 को असामयिक निधन ने ना केवल शायरी के आंगन को बल्कि पूरे साहित्य जगत को स्तब्ध कर दिया।
मुन्नवर राणा की जीवनी
मुन्नवर राणा का जन्म 1946 में उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद में हुआ था। उनके पिता उर्दू शायर थे, जिन्होंने उन्हें साहित्य की दुनिया से परिचित कराया, जिससे वह काफी कम उम्र से ही वह कविता लिखने लगे थे। मुन्नवर राणा की शायरी में समाज की नब्ज टटोलने की गजब की क्षमता थी। गरीबी, बेबसियो और हाशिए पर पड़े लोगों के दर्द को उन्होंने अपनी शायरी में बड़ी ही खूबसूरती से पिरोया है।
उनकी शायरी की एक खासियत यह भी थी कि वह सीधी-साधी लेकिन बेहद प्रभावशाली होती थी। हर कोई उनकी शायरी को समझ सकता था और उसमें अपनी जिंदगी का एक टुकड़ा ढूंढ सकता था। और शायद यही वजह है कि वह आम जनता के बीच इतने लोकप्रिय थे। उनकी कविता सम्मेलनों में हजारों लोग उनका इंतजार करते थे और उनकी शायरी पर तालियों की गरगराहट गूंज उठती थीं।
मुन्नवर राणा की कुछ मुख्य शायरी इस प्रकार हैं:
अब जुदाई के सफ़र को मिरे आसान करो, तुम मुझे ख़्वाब में आ कर न परेशान करो!
चलती फिरती हुई आँखों से अज़ाँ देखी है, मैं ने जन्नत तो नहीं देखी है माँ देखी है!
अभी ज़िंदा है माँ मेरी मुझे कुछ भी नहीं होगा, मैं घर से जब निकलता हूँ दुआ भी साथ चलती है!
किसी को घर मिला हिस्से में या कोई दुकाँ आई, मैं घर में सब से छोटा था मिरे हिस्से में माँ आई!
कुछ बिखरी हुई यादों के क़िस्से भी बहुत थे, कुछ उस ने भी बालों को खुला छोड़ दिया था!
फ़रिश्ते आ कर उन के जिस्म पर ख़ुश्बू लगाते हैं, वो बच्चे रेल के डिब्बों में जो झाड़ू लगाते हैं!
गर कभी रोना ही पड़ जाए तो इतना रोना, आ के बरसात तिरे सामने तौबा कर ले!
फिल्म जगत में बनाई पहचान:
मुन्नवर राणा ने कई मशहूर गीत भी लिखे हैं, जो बॉलीवुड फिल्मों में शामिल किए गए हैं। 'तेरे साथ जो हवाएं,' 'अलबेला सजन,' 'ये जो देश है मेरा' जैसे गीतों ने उन्हें फिल्म जगत में और भी पहचान दिलाई। उनकी कई गजलों और नज्मों को एल्बम में भी रिकॉर्ड किया गया है।
मुन्नवर राणा की सबसे बड़ी खासियत उनका बेबाक अंदाज था। वह सामाजिक विषयों पर खुलकर अपनी राय रखते थे और किसी भी तरह के पाखंड या अन्याय का विरोध करते थे। और उनकी ये बेबाकी ही उन्हें और भी खास बनाती थी।
मुन्नवर राणा के असामयिक निधन से हिंदी साहित्य जगत को भारी क्षति हुई है। लेकिन उनकी शायरी, उनके गीत हमेशा जिंदा रहेंगे। उनके शब्दों का जादू आने वाली पीढ़ियों को भी मोहित करता रहेगा।