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ज्ञानवापी मस्जिद का इतिहास: Gyanvapi Mosque History
ज्ञानवापी मस्जिद, जिसे आलमगीर मस्जिद के नाम से भी जाना जाता है, वाराणसी में स्थित है। यह काशी विश्वनाथ मंदिर के बिल्कुल सटे स्थित है। इतिहासकारों की माने तो ज्ञानवापी मस्जिद कभी काशी विश्वनाथ मंदिर हुआ करती थी जिसे कई बार तोड़ा और बनाया जा चुका हैं। इसे सबसे पहली बार मोहम्मद गौरी के शासनकाल में सन् 1194 से 1197 के दौरान तोड़ा गया था। बता दे कि मोहम्मद गौरी एक अफगानी शासक था जो 12वीं शताब्दी के अंत में सन 1192 ई. में भारत आया था। मोहम्मद गौरी एक कट्टर मुस्लिम शासक था जिसने अपने शासनकाल में हिंदू मंदिरों को तोड़ने के आदेश दिए थे। मोहम्मद गौरी द्वारा तोड़े गए प्रमुख मंदिरों में शामिल है:
- वाराणसी में स्थित काशी विश्वनाथ मंदिर
- गुजरात में स्थित सोमनाथ मंदिर
- मथुरा में स्थित विश्रामगिरी मंदिर
- राजस्थान में स्थित ज्वालाजी मंदिर
- आंध्र प्रदेश के आनंदपुर में स्थित बालाजी मंदिर
ये बस कुछ प्रसिद्ध मंदिरों के नाम हैं। इसके अलावा भी, मोहम्मद गौरी के शासनकाल में अनेकों मंदिरों को तोड़ा गया था।
कई बार तोड़ा और बनाया गया?
काशीविश्वनाथ मंदिर पर सबसे पहला हमला मोहम्मद गौरी ने किया था। बताया जाता है कि मोहम्मद गौरी ने काशी विश्वनाथ मंदिर पर आक्रमण के दौरान मंदिर में उपस्थित सभी पुजारी और भक्तों की हत्या करवा दी थी। मंदिर पर आक्रमण के पीछे मोहम्मद गौरी का एकमात्र उद्देश्य धन की लूटपाट करना था।
मोहम्मद गौरी द्वारा तोड़े जाने के बाद, जयचंद्र नाम के गढ़वाल राजा ने 12वीं शताब्दी के अंत में मंदिर का पुनर्निर्माण करवाया था।
14वीं शताब्दी में फिरोजशाह तुगलक ने फिर एक बार मंदिर पर आक्रमण किया और उसे काफी क्षति पहुंचाई। फिर एक बार बनारस की रानी मणिकर्णिका देवी ने मंदिर का पुनर्निर्माण करवाया।
इसके बाद सन् 1669 ईस्वी में मुगल बादशाह औरंगजेब ने काशीविश्वनाथ मंदिर के गुंबज को तोड़कर उसकी जगह मस्जिद का निर्माण करवाया, जिसे आज ज्ञानवापी मस्जिद के नाम से जाना जाता है। ज्ञानवापी मस्जिद को आलमगीर मस्जिद के नाम से भी जाना जाता है, जो मुगल बादशाह औरंगजेब का दूसरा नाम था।
औरंगजेब मुगल साम्राज्य का छठा बादशाह था जिसने 31 जुलाई 1658 से 3 मार्च 1707 तक, यानी कुल 48 साल और 7 महीने मुगल गद्दी पर राज किया। यह मुगल साम्राज्य का सबसे लंबा शासनकाल था। औरंगजेब को "आलमगीर" की उपाधि भी दी गई थी, जिसका अर्थ होता है “दुनिया जितने वाला”।
इतिहासकारों के अनुसार औरंगजेब एक कट्टर मुस्लिम शासक था जो यह मानता था कि इस्लाम ही एकमात्र सच्चा धर्म हैं। औरंगजेब को उसकी हिंदू विरोधी नीतियों के लिए जाना जाता हैं जिसने अपने शासनकाल में हिंदुओ का उत्पीड़न किया। औरंगजेब ने हिंदुओं पर जजिया कर लगाया था, जो एक गैर-मुस्लिम कर था। औरंगजेब के शासनकाल में अनेकों हिंदू मंदिरों को ध्वस्त कर दिया गया, जिनमें काशी विश्वनाथ मंदिर और मथुरा का कृष्ण जन्मभूमि मंदिर शामिल हैं।
वर्तमान विवाद का कारण:
इतिहासकारों की मानें तो औरंगजेब ने जब काशी विश्वनाथ मंदिर को तोड़ने का आदेश दिया था उससे पहले मंदिर के पुजारीयों ने मंदिर की मूर्ति को लेजाकर गंगा नदी में छुपा दिया था। इसके बाद समय-समय पर हिंदुओं द्वारा मंदिर की जगह बनाए गए, ज्ञानवापी मस्जिद को हटाकर पुनः मंदिर बनाए जाने के प्रयास किए जाने लगे। काफी समय बाद, जब इंदौर की रानी अहिल्याबाई होल्कर ने विवाद को बढ़ता देखकर बीच का रास्ता निकाला, और उन्होंने ज्ञानवापी मस्जिद के ठीक बगल में ने काशी विश्वनाथ मंदिर का निर्माण करवाया इसके बाद गंगा में छुपाई गई मूर्ति पुनः मंदिर में स्थापित की गई।
लेकिन चुकी मंदिर नई जगह बनाई गई थी अतः हिंदू पक्ष इस फैसले से खुश नहीं थे और इसके बाद भी हिंदुओं द्वारा समय-समय पर ज्ञानवापी मस्जिद की जगह पुनः मंदिर बनाए जाने की मांग की जा रही थी।
इसके बाद सन् 1810 में इस बात को लेकर फिर एक बार विवाद शुरू हुआ। इस समय तक भारत में अंग्रेजों का शासन शुरू हो चुका था। अतः इस बात को लेकर पहली बार अंग्रेजों द्वारा ज्ञानवापी मस्जिद में सर्वेक्षण किया गया। सर्वेक्षण में पाया गया की मस्जिद के वजूद खाने में एक शिवलिंग मौजूद हैं जिसके बाद अंग्रेजों ने इस स्थान को "शिवाला-ज्ञानवापी मस्जिद" के रूप में दर्ज किया। इसके बाद से यह मामला अंग्रेजों की न्यायालय में चला गया।
जिसके बाद के घटनाक्रम क्रमशः हैं:
1819:
- वाराणसी के तत्कालीन कलेक्टर, जॉन मैक्सवेल को ज्ञानवापी मस्जिद परिसर में शिवालय के अवशेषों का निरीक्षण करने के लिए भेजा गया।
- मैक्सवेल ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि मस्जिद के वजूखाने में मौजूद शिवलिंग "एक प्राचीन हिंदू मंदिर का अवशेष" है।
1822:
- ज्ञानवापी मस्जिद परिसर में शिवालय के अवशेषों की पुनः खुदाई की गई।
- खुदाई में शिवलिंग, नंदी की मूर्ति और हिंदू धर्म से संबंधित अन्य अवशेष मिले।
1828:
- ज्ञानवापी मस्जिद परिसर में शिवालय के अवशेषों का एक और सर्वेक्षण किया गया।
- इस सर्वेक्षण में भी शिवलिंग और हिंदू धर्म से संबंधित अन्य अवशेषों की पुष्टि हुई।
1835:
- ज्ञानवापी मस्जिद परिसर में शिवालय के अवशेषों पर एक छोटा मंदिर बनाया गया।
- इस मंदिर को "ज्ञानवापी मंदिर" के नाम से जाना जाता है।
1876:
- ज्ञानवापी मस्जिद परिसर में शिवालय के अवशेषों पर एक और बड़ा मंदिर बनाया गया।
- इस मंदिर को "विश्वनाथ मंदिर" के नाम से जाना जाता है।
1936:
- ज्ञानवापी मस्जिद परिसर में शिवालय के अवशेषों पर एक और मंदिर बनाया गया।
- इस मंदिर को "अन्नपूर्णा मंदिर" के नाम से जाना जाता है।
1947:
- भारत की स्वतंत्रता के बाद, ज्ञानवापी मस्जिद परिसर में हिंदू और मुस्लिम दोनों समुदायों के बीच विवाद शुरू हो गया।
- हिंदू पक्ष का दावा है कि ज्ञानवापी मस्जिद एक प्राचीन शिवालय के अवशेषों पर बनाई गई थी, जबकि मुस्लिम पक्ष का दावा है कि यह एक मस्जिद है और इसे 1991 के पूजा स्थल अधिनियम के तहत संरक्षित किया जाना चाहिए।
भारत की आजादी के बाद ज्ञानवापी मंदिर के घटनाक्रम:
1947:
- भारत की स्वतंत्रता के बाद, ज्ञानवापी मस्जिद परिसर में हिंदू और मुस्लिम दोनों समुदायों के बीच विवाद शुरू हो गया।
- हिंदू पक्ष का दावा है कि ज्ञानवापी मस्जिद एक प्राचीन शिवालय के अवशेषों पर बनाई गई थी, जबकि मुस्लिम पक्ष का दावा है कि यह एक मस्जिद है और इसे 1991 के पूजा स्थल अधिनियम के तहत संरक्षित किया जाना चाहिए।
1991:
- भारत सरकार ने पूजा स्थल अधिनियम 1991 पारित किया।
- इस अधिनियम के अनुसार, 15 अगस्त 1947 को जो धार्मिक स्थल जिस धर्म के नियंत्रण में था, वह उसी धर्म के नियंत्रण में रहेगा।
1992:
- ज्ञानवापी मस्जिद परिसर में हिंदू पक्ष ने राम मंदिर निर्माण आंदोलन के दौरान "शिवलिंग" की पूजा शुरू कर दी।
- इस घटना के बाद, हिंदू और मुस्लिम समुदायों के बीच तनाव बढ़ गया।
1993:
- ज्ञानवापी मस्जिद परिसर में "शिवलिंग" की पूजा को लेकर वाराणसी की एक अदालत में याचिका दायर की गई।
- मुलायम सिंह यादव की सरकार ने इस मामले में हस्तक्षेप करते हुए "शिवलिंग" की पूजा पर रोक लगा दी।
- मुलायम सिंह यादव की सरकार ने मस्जिद परिसर को "सील" कर दिया और दोनों पक्षों को "शिवलिंग" की पूजा या नमाज पढ़ने से रोक दिया।
- अदालत ने इस मामले की सुनवाई शुरू की।
1994:
- वाराणसी की एक अदालत ने "शिवलिंग" की पूजा पर लगी रोक हटाने का आदेश दिया।
- मुलायम सिंह यादव की सरकार ने इस आदेश को चुनौती दी और हाईकोर्ट में अपील दायर की।
1995:
- इलाहाबाद हाईकोर्ट ने "शिवलिंग" की पूजा पर लगी रोक हटाने का आदेश दिया।
- मुलायम सिंह यादव की सरकार ने इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी।
1996:
- सुप्रीम कोर्ट ने "शिवलिंग" की पूजा पर लगी रोक हटाने का आदेश दिया।
- मुलायम सिंह यादव की सरकार ने इस फैसले को स्वीकार किया और "शिवलिंग" की पूजा शुरू होने दी।
2002:
- वाराणसी की एक अदालत ने फैसला सुनाया कि ज्ञानवापी मस्जिद परिसर में "शिवलिंग" की पूजा जारी रह सकती है।
- जिसके बाद मुलायम सिंह यादव की सरकार को मजबूरन इस फैसले को मानना पड़ा।
- इस फैसले के बाद, हिंदू पक्ष ने ज्ञानवापी मस्जिद परिसर में मंदिर निर्माण की मांग तेज कर दी।
2003:
- ज्ञानवापी मस्जिद परिसर में "शिवलिंग" की पूजा को लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई।
- सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई शुरू की।
2005:
- सुप्रीम कोर्ट ने ज्ञानवापी मस्जिद परिसर का सर्वेक्षण करने का आदेश दिया।
- सर्वेक्षण में पाया गया कि मस्जिद के वजूखाने में एक "संरचना" मौजूद है, जो शिवलिंग हो सकती है।
2006:
- सुप्रीम कोर्ट ने ज्ञानवापी मस्जिद परिसर में "शिवलिंग" की पूजा को लेकर अंतरिम आदेश जारी किया।
- इस आदेश के अनुसार, "शिवलिंग" की पूजा जारी रह सकती है, लेकिन मस्जिद में नमाज पढ़ने पर भी कोई रोक नहीं होगी।
2019:
- ज्ञानवापी मस्जिद परिसर में "शिवलिंग" की पूजा को लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई।
- सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई शुरू की।
2022:
- वाराणसी की एक अदालत ने ज्ञानवापी मस्जिद परिसर का सर्वेक्षण करने का आदेश दिया।
- सर्वेक्षण में पाया गया कि मस्जिद के वजूखाने में एक "संरचना" मौजूद है, जो शिवलिंग हो सकती है।
- सर्वेक्षण रिपोर्ट आने के बाद, हिंदू पक्ष ने मस्जिद परिसर में "माँ श्रृंगार गौरी" की मूर्ति की नियमित पूजा-अर्चना करने की अनुमति देने की मांग करते हुए अदालत में याचिका दायर की।
2023:
- 4 सितंबर 2023: वाराणसी की एक अदालत ने फैसला सुनाया कि ज्ञानवापी मस्जिद के अंदर हिंदुओं को पूजा करने का अधिकार है। अदालत ने कहा कि मस्जिद के अंदर मिले शिवलिंग को सुरक्षित रखा जाएगा और मुस्लिमों को नमाज के लिए अलग जगह दी जाएगी।
- 21 सितंबर 2023: इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने वाराणसी अदालत के फैसले पर रोक लगा दी। उच्च न्यायालय ने कहा कि ज्ञानवापी मस्जिद के अंदर पूजा करने का अधिकार हिंदुओं को नहीं दिया जा सकता।
- 19 अक्टूबर 2023: इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कहा कि ज्ञानवापी मस्जिद का वजूखाना (وضوضा) और नमाज पढ़ने की जगह हिंदुओं को नहीं दी जा सकती।
- 19 दिसंबर 2023: इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कहा कि ज्ञानवापी मस्जिद का वजूखाना (وضوضा) और नमाज पढ़ने की जगह हिंदुओं को नहीं दी जा सकती।
- 16 जनवरी 2024: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ज्ञानवापी मस्जिद के अंदर मिले शिवलिंग को सुरक्षित रखा जाएगा। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ज्ञानवापी मस्जिद के अंदर पूजा करने का अधिकार हिंदुओं को नहीं दिया जा सकता।
- 31 जनवरी 2024: सुप्रीम कोर्ट ने ज्ञानवापी मस्जिद मामले की सुनवाई 12 मार्च 2024 तक स्थगित कर दी।
- 4 फरवरी 2024: वाराणसी की एक अदालत ने कहा कि ज्ञानवापी मस्जिद के अंदर हिंदुओं को पूजा करने का अधिकार है। अदालत ने कहा कि मस्जिद के अंदर मिले शिवलिंग को सुरक्षित रखा जाएगा और मुस्लिमों को नमाज के लिए अलग जगह दी जाएगी।
कोर्ट के फैसले पर क्या है दोनों पक्षों की प्रतिक्रिया:
यह मामला भारत में धार्मिक सद्भाव और पूजा स्थलों के स्वामित्व के मुद्दे पर बहस का विषय बन गया है।
एक तरफ जहां हिंदू पक्ष न्यालय के फैसले से खुश हैं वही मुस्लिम पक्ष के लोगों ने इसे लेकर आपत्ति जताई है।
आइए जानते हैं दोनों पक्षों की राय:
हिंदू पक्ष:
- विश्व हिंदू परिषद (VHP) ने वाराणसी अदालत के फैसले का स्वागत किया है और कहा है कि यह एक ऐतिहासिक फैसला है।
- अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद (Akhil Bharatiya Akhara Parishad) ने भी वाराणसी अदालत के फैसले का स्वागत किया है और कहा है कि यह एक सत्य की जीत है।
- राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) ने कहा है कि ज्ञानवापी मस्जिद का मामला एक न्यायिक मामला है और न्यायालय का फैसला सभी को स्वीकार करना चाहिए।
मुस्लिम पक्ष:
- ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPLB) ने वाराणसी अदालत के फैसले की निंदा की है और कहा है कि यह एक गलत फैसला है।
- जमीयत उलेमा-ए-हिंद (Jamiat Ulema-e-Hind) ने भी वाराणसी अदालत के फैसले की निंदा की है और कहा है कि यह एक गलत फैसला है।
- ऑल इंडिया मुस्लिम मजलिस-ए-मुशावरत (All India Muslim Majlis-e-Mushawarat) ने कहा है कि ज्ञानवापी मस्जिद का मामला एक धार्मिक मामला है और इसे न्यायालय में नहीं, बल्कि बातचीत के माध्यम से हल किया जाना चाहिए।
सामान्य जनता:
- सामान्य जनता में इस मामले को लेकर मिश्रित प्रतिक्रिया है। कुछ लोग वाराणसी अदालत के फैसले का समर्थन कर रहे हैं, जबकि कुछ लोग इस फैसले का विरोध कर रहे हैं।
- कुछ लोग इस मामले को लेकर चिंतित हैं और चाहते हैं कि यह मामला शांति से हल हो।
हालाकि, यह मामला अभी भी पूरी तरह सुलझा नहीं है और इस मामले में आगे भी फैसले सुनाए जा सकते हैं। यह देखना बाकी है कि इस मामले का अंतिम फैसला क्या होगा और इसका भारत में धार्मिक सद्भाव पर क्या प्रभाव पड़ेगा।
महत्वपूर्ण नोट:
यह पोस्ट ज्ञानवापी मंदिर-मस्जिद विवाद से संबंधित है, जो एक अत्यंत संवेदनशील और जटिल विषय है। इस पोस्ट में प्रस्तुत जानकारी विभिन्न स्रोतों से एकत्र की गई है और इसकी सटीकता की पूर्ण गारंटी नहीं है। इस मामले पर विभिन्न दृष्टिकोण मौजूद हैं, और विभिन्न समुदायों की मान्यताओं का सम्मान करना महत्वपूर्ण है।
कृपया इस पोस्ट को पढ़ते समय सभी दृष्टिकोणों को ध्यान में रखें और स्वयं अपनी राय बनाएं। साथ ही, निम्नलिखित का ध्यान रखें:
- तथ्यों पर ध्यान दें: किसी भी निष्कर्ष पर पहुंचने से पहले सभी पक्षों से जुड़े तथ्यों को गहराई से समझें।
- सम्मानजनक भाषा का प्रयोग करें: पोस्ट में या टिप्पणियों में किसी भी समुदाय या व्यक्ति के प्रति द्वेषपूर्ण या भेदभावपूर्ण भाषा का प्रयोग न करें।
- शांतिपूर्ण चर्चा को बढ़ावा दें: विभिन्न पक्षों के प्रति सम्मानजनक और सहिष्णु रहते हुए इस जटिल विषय पर शांतिपूर्ण और ज्ञानवर्धक चर्चा को बढ़ावा दें।