SBI Electoral Bonds: भारतीय स्टेट बैंक (SBI) चुनावी बॉन्ड योजना को लेकर हुए विवाद में फंस गया है। यह योजना भारत सरकार द्वारा 2018 में राजनीतिक दान को गुमनाम बनाने के लिए शुरू की गई थी।
मुख्य बिंदु:
- सुप्रीम कोर्ट का फैसला: 15 फरवरी, 2024 को, सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी बॉन्ड योजना को असंवैधानिक घोषित कर दिया। अदालत ने अपने फैसले में पारदर्शिता की कमी और राजनीतिक दलों पर अनुचित प्रभाव की आशंका को कारण बताया।
- SBI की भूमिका: चुनावी बॉन्ड जारी करने और भुनाने के लिए एकमात्र अधिकृत बैंक के रूप में, SBI को अदालत द्वारा 6 मार्च, 2024 तक चुनाव आयोग (ECI) को सभी लेनदेन का विवरण, दानदाताओं और प्राप्तकर्ताओं सहित, जमा करने का निर्देश दिया गया था।
- SBI का विस्तार के लिए अनुरोध: समय सीमा से दो दिन पहले, SBI ने डेटा प्राप्त करने और संकलित करने की जटिलता का हवाला देते हुए 30 जून, 2024 तक विस्तार देने का आवेदन दायर किया। इस अनुरोध को दानदाताओं की पहचान, विशेष रूप से सत्तारूढ़ दल को लाभान्वित करने वालों की पहचान को छिपाने के लिए विलंब करने की रणनीति के रूप में आलोचनाओं का सामना करना पड़ा है।
- डेटा से जुड़ी चिंताएं: आवेदन से यह भी पता चला है कि बॉन्ड से संबंधित कुछ महत्वपूर्ण जानकारी डिजिटल रूप से संग्रहीत नहीं की गई थी, जिससे डेटा प्रबंधन प्रथाओं और संभावित हेराफेरी को लेकर चिंताएं पैदा हुईं।
वर्तमान स्थिति:
- सुप्रीम कोर्ट को अभी SBI के विस्तार अनुरोध पर फैसला लेना बाकी है।
- इस विवाद ने राजनीतिक चंदन में पारदर्शिता और गुमनाम दान के भारतीय लोकतंत्र पर संभावित प्रभाव पर बहस को फिर से प्रज्वलित कर दिया है।
अतिरिक्त विचारणीय विवरण:
- 12 अप्रैल, 2019 से 15 फरवरी, 2024 के बीच जारी किए गए चुनावी बॉन्डों की संख्या कथित तौर पर 22, 217 है।
- आवेदन में दावा किया गया है कि जानकारी को "दो साइलो" में संग्रहीत करने के कारण, 44,434 सेटों के लिए डेटा कोडिंग और संकलन की आवश्यकता है।
- विशेषज्ञों ने डेटा की मात्रा को देखते हुए दावा किए गए समय की कमी की वैधता पर सवाल उठाया है।
यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि ये 6 मार्च, 2024 तक के नवीनतम विकास हैं, और स्थिति आगे विकसित हो सकती है।