मडगांव एक्सप्रेस समीक्षा: दोस्ती का धमाका, पर कहीं खो गई कहानी?

कुनाल खेमू के निर्देशन में बनी पहली फिल्म "मडगांव एक्सप्रेस" तीन दोस्तों की कहानी है - डोडो (दिव्येंदु), आयुष (प्रतीक गांधी) और प्रतीक (अविनाश तिवारी). बचपन से ही गोवा जाने का सपना देखने वाले ये तीनों अब जिम्मेदारियों के बोझ तले दबे हुए हैं. अचानक एक मौका मिलने पर ये कम बजट में गोवा जाने का प्लान बनाते हैं और ट्रेन का सफर चुनते हैं. यहीं से शुरू होता है उनकी एक उटपटांग, हंगामाखेज सफर.

कहानी और पटकथा (Story and Screenplay)

कहानी कोई नई नहीं है. बॉलीवुड में पहले भी कई फिल्में बन चुकी हैं जिनमें दोस्त मिलकर किसी रोड ट्रिप या ट्रेन ट्रिप पर जाते हैं और रास्ते में होने वाले हंगामा दर्शकों का मनोरंजन करते हैं. "मडगांव एक्सप्रेस" भी उसी फेहरिस्त में शामिल हो जाती है. हालांकि, कहानी में नयापन भले ही न हो, लेकिन फिल्म की रफ़्तार आपको सीट से बांधे रखती है. कॉमेडी का तड़का और तीनों दोस्तों के बीच की शानदार कैमिस्ट्री दर्शकों को हंसाने में कामयाब होती है.

लेकिन, पटकथा (screenplay) में कमजोरियां भी नजर आती हैं. कहानी में कई जगहों पर त्रुटि (logic errors) हैं और कुछ मोड़ बहुत ही अविश्वसनीय लगते हैं. कुल मिलाकर, कहानी कमजोर होने के कारण फिल्म कहीं-कहीं पर खींची हुई सी लगती है.

निर्देशन (Direction)

कुनाल खेमू की यह पहली निर्देशित फिल्म है. एक पहली फिल्म के तौर पर निर्देशन काफी सभ्य है. कहानी को सरलता से पेश किया गया है और फिल्म का फ्लो (flow) बनाए रखने में निर्देशक सफल रहते हैं. हालांकि, कुछ मौकों पर फिल्म का कॉमेडी थोड़ा फीका पड़ जाता है और निर्देशन में थोड़ी और निखार की गुंजाइश नजर आती है.

अभिनय (Performances)

फिल्म की जान है इसकी मुख्य तिकड़ी - दिव्येंदु, प्रतीक गांधी और अविनाश तिवारी. तीनों कलाकारों ने अपने किरदारों में जान फूंक दी है. डोडो के रूप में दिव्येंदु का हमेशा की तरह का हास्य अंदाज दर्शकों को गुदगुदाता है. प्रतीक गांधी ने भी संजीदा किन्तु कॉमेडी के तड़के वाले किरदार को बखूबी निभाया है. अविनाश तिवारी का किरदार थोड़ा कमजोर है लेकिन वो भी अपने कॉमिक टाइमिंग से प्रभाव छोड़ते हैं. तीनों की आपसी कैमिस्ट्री कमाल की है और यही फिल्म की सबसे बड़ी ताकत है.

नोरा फतेही का फिल्म में एक आइटम नंबर है, लेकिन कहानी में उनका कोई खास योगदान नहीं है. बाकी कलाकारों ने भी अपने सहायक किरदारों को संजीदता से निभाया है.

संगीत (Music)

फिल्म का संगीत कुछ खास कमाल नहीं दिखा पाता. गाने औसत दर्जे के हैं और कहानी में फिट भी नहीं बैठते. फिल्म को यादगार बनाने में संगीत का कोई योगदान नहीं है.

निष्कर्ष (The Verdict)

"मडगांव एक्सप्रेस" एक हल्की-फुल्की कॉमेडी फिल्म है जो आपको हंसाने के साथ-साथ पुरानी यादों को भी ताजा कर देती है. तीनों दोस्तों की कैमिस्ट्री और फिल्म की रफ़्तार दर्शकों को बांधे रखती है. लेकिन, कमजोर कहानी और औसत दर्जे का संगीत फिल्म को कमजोर बना देते हैं.

रेटिंग: 2.5/5

अतिरिक्त टिप्पणी (Additional Comments)

  • फिल्म का कॉमेडी कुछ दर्शकों को पसंद आ सकता है, लेकिन कुछ को यह थोड़ा फूहड़ और अश्लील भी लग सकता है.
  • फिल्म में कुछ दृश्य हैं जो बच्चों के लिए अनुकूल नहीं हैं.
  • फिल्म का अंत थोड़ा जल्दबाजी में और अपूर्ण लगता है.

क्या आपने "मडगांव एक्सप्रेस" देखी है? आपकी क्या राय है?

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