कच्चातीव, श्रीलंका के जाफना जिले में स्थित एक छोटा, निर्जन द्वीप है। मात्र 285 एकड़ (115 हेक्टेयर) के क्षेत्रफल वाला यह टापू भारत और श्रीलंका के बीच एक महत्वपूर्ण विवाद का विषय रहा है। यद्यपि इस द्वीप पर कभी भी किसी देश का प्रत्यक्ष नियंत्रण नहीं रहा, लेकिन मछली पकड़ने के पारंपरिक अधिकारों को लेकर दोनों देशों के तमिल मछुआरों के बीच इसका दशकों से महत्व रहा है।
इतिहास की परछाईं
कच्चातीव का इतिहास पेचीदा है। 17वीं शताब्दी के प्रारंभ तक यह माना जाता है कि यह द्वीप जाफना साम्राज्य के अधीन था। बाद में इसे रामनाड ज़मींदारी (अब तमिलनाडु का हिस्सा) द्वारा नियंत्रित किया जाने लगा। 1948 में भारत के स्वतंत्र होने और ब्रिटिश सीलोन (अब श्रीलंका) से विभाजन के बाद, दोनों देशों के बीच समुद्री सीमा निर्धारण को लेकर विवाद खड़ा हो गया। भारत का दावा था कि कच्चातीव पारंपरिक रूप से भारतीय मछुआरों द्वारा उपयोग किया जाता रहा है, वहीं श्रीलंका का कहना था कि यह उसके क्षेत्रीय जल में स्थित है।
विवाद का अंत?
1974 में भारत और श्रीलंका के बीच समुद्री सीमा विवाद को सुलझाने के लिए एक महत्वपूर्ण समझौता हुआ। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली भारतीय सरकार ने "भारत-श्रीलंका समुद्री सीमा समझौते" के तहत कच्चातीव को श्रीलंका का हिस्सा मान लिया। इस समझौते का उद्देश्य पाक जलडमरूमध्य में समुद्री सीमाओं को स्पष्ट करना था।
हालांकि, इस समझौते ने कच्चातीव मुद्दे को पूरी तरह से सुलझाया नहीं। भारतीय मछुआरों को अभी भी साल में एक बार, मई के महीने में परंपरागत रूप से मछली पकड़ने के लिए कच्चातीव के आसपास के क्षेत्र में जाने की अनुमति है। लेकिन कई बार श्रीलंकाई सुरक्षा बलों द्वारा उन्हें हिरासत में ले लिया जाता है, जिससे दोनों देशों के बीच तनाव पैदा हो जाता है।
विवाद के मायने
कच्चातीव विवाद केवल एक छोटे से द्वीप को लेकर नहीं है, बल्कि इससे कहीं अधिक जटिल है। यह विवाद मछली पकड़ने के अधिकारों और उससे जुड़े आजीविका के सवालों को उठाता है। साथ ही, यह दोनों देशों के तमिल समुदायों के बीच सांस्कृतिक और ऐतिहासिक संबंधों को भी दर्शाता है।
हाल के वर्षों में, दोनों देशों के बीच कच्चातीव मुद्दे पर वार्ता हुई है, लेकिन अभी तक कोई स्थायी समाधान नहीं निकला है। भविष्य में भारत और श्रीलंका के बीच मछली पकड़ने के अधिकारों और समुद्री सीमाओं को लेकर सहयोगात्मक दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है।
कच्चातीव: भविष्य की राह
कच्चातीव विवाद एक जटिल मुद्दा है, लेकिन सहयोग और कूटनीति के माध्यम से इसका समाधान निकाला जा सकता है. आइए देखें भविष्य में इस मामले को सुलझाने के लिए क्या किया जा सकता है:
- संयुक्त मछली पालन प्रबंधन: भारत और श्रीलंका संयुक्त रूप से कच्चातीव के आसपास के जल क्षेत्र के लिए मछली पालन प्रबंधन योजना तैयार कर सकते हैं. यह योजना दोनों देशों के मछुआरों के लिए मछली पकड़ने के कोटा और सीजन निर्धारित कर सकती है. इससे दोनों देशों के बीच संसाधनों का सतत उपयोग सुनिश्चित (sanrakshan) होगा और टिकाऊ मछली पालन को बढ़ावा मिलेगा.
- सहयोगात्मक गश्त: दोनों देश तटरक्षक बल और मछुआरों के संगठनों के बीच सहयोगात्मक गश्त का आयोजन कर सकते हैं. इससे अवैध मछली पकड़ने पर रोकथाम लगेगी और दोनों देशों के मछुआरों के बीच सुरक्षा सुनिश्चित होगी.
- आर्थिक सहयोग: भारत श्रीलंकाई मछुआरों को आधुनिक मछली पकड़ने के उपकरण और तकनीक प्रदान करने में सहयोग कर सकता है. इससे उनकी आजीविका में सुधार होगा और कच्चातीव पर निर्भरता कम होगी.
- संवाद और वार्ता: भारत और श्रीलंका को नियमित रूप से वार्ता करनी चाहिए और कूटनीतिक तरीके से इस मुद्दे का समाधान ढूंढना चाहिए. दोनों देशों के बीच मछुआरों के संगठनों को भी वार्ता में शामिल किया जाना चाहिए, क्योंकि वे सीधे तौर पर इससे प्रभावित होते हैं.
कच्चातीव विवाद के समाधान से न केवल दोनों देशों के बीच तनाव कम होगा बल्कि मछुआरों की आजीविका में भी सुधार होगा. यह सहयोग भविष्य में भारत और श्रीलंका के बीच मजबूत समुद्री सुरक्षा और सहयोग का मार्ग प्रशस्त कर सकता है.